तनहा भी रहा करो...कभी कभी...
शायद खुद से मुलाकात हो जाये...
दुनिया की बातें न सुना करो...कभी...कभी..
शायद दिल कुछ ....अपनी बात सुनाए....
इस शोर...हल्ले...से दूर तो निकलो कभी...
शायद...मन..नया...पुराना सा..कुछ गुनगुनाये.
इस उजाले से दूर..अँधेरे में कुछ देर तो बैठा करो...
शायद...रूह की..बुझती लौ...नजर आ जाये...
कभी..मुखौटे उतार...आइने का सामना तो करो...
क्या पता....वो भुला हुआ इंसान...दिख जाये....
कभी खुद से भी बातें किया करो...
शायद...खुद का भी हाल-चाल पता चल पाए...