इतनी ज्यादा....

दिल की धड़कन…  सुनाई देती नहीं अब ….
ज़िन्दगी में शोर ही है इतना ज्यादा…

खुद से ही मुलाकात नहीं होती अब… 
शायद…. यहाँ भीड़ ही है इतनी ज्यादा… 

अब…आंसुओं की छलकी बूंदें दिखाई देती नहीं 
आजकल बारिश ही है शायद इतनी ज्यादा...

सुलग रही है रूह... पर.. दिखता नहीं..
बाहर ही.. आग.. धुआं.. चिंगारी है इतनी ज्यादा...

जुगनू दिखाई ही नहीं देते अब...
रात को भी.. उजाला ही है शायद... अब इतना ज्यादा

मोहबत तो है... तुझसे ओ नादाँ..
पर अब खुद से ही प्यार है... इतना ज्यादा..

दोस्ती मुश्किल नहीं अब भी ...
पर दुश्मनी आसाँ जो है.. इतनी ज्यादा ..

शाबाशी की थपथपाहट होती नहीं महसूस अब..
पुराने जख्म.. उनके दर्द ही हैं.. इतने ज्यादा...

आज़ादी की चाह है.…  अब भी है ..... 
पर अब गुलामी की आदत जो लगी है.. इतनी ज्यादा.... 

दिल की धड़कन…  सुनाई देती नहीं अब ….
शायद …. शोर ही है इतना ज्यादा…