क्यों आज..तुम यूँ बेगाने से लगते हो...
क्यों..तुम...ऐसे ..अनजाने से लगते हो..
यूँ नहीं.. कि अब वो प्यार नहीं...
यूँ नहीं..कि तेरा अब इंतज़ार नहीं...
सच है..कि हैं..बहुत दूरियां..
जानता हूँ..हैं कई मजबूरियाँ...
बेगानों से भी मिलते हैं..यूँ मुस्कुराके...
परायों से भी हैं..अपनापन निभाते..
हमसे मिले हो आज तुम..यूँ बेरुखी से...
सोचते हैं..क्या हम भी थे कभी यूँ अपने से..
बेगाना ही समझ कर मिल लिया होता...
फिर एक बार...मुस्कुरा ही दिया होता...
क्यों आज..तुम यूँ बेगाने से लगते हो...
क्यों..अनजाने से लगते हो..