तुम ही हो....या है कोई और ही..


कुछ यूँ था हमें इंतज़ार तेरा...
जैसा सूखी धरती को.बारिश का..

वो गुजारे लम्हें करने थे याद हमें...
वो ज़िन्दगी फिर ज़ीने की थी आस हमें..

पर तुम कुछ आये यूँ बेगाने की तरह..
जैसे..गुजर जाये बादल.. बिन बरसे..

ना कर सकते हैं तुमसे..इज़हार अपने इस दर्द का..
क्या पता...तुम ही हो....या है कोई और ही..